आपकी बात से पूर्णत: असहमत हूँ. आपका कथन यह शोषितों का बौद्धिक शंखनाद है. आपके मनुवादी होने की पुष्टि करता है शंख बजाना पोंगा पंथियों का काम है, यह बुद्धिजीवियों का काम कब से हो गया ? अभी कुछ दिनों पहले आपने ब्रहमणवादियों पर करार प्रहार किया , मैं आपके साथ था परन्तु ये क्या आप भी सामंतो के रास्ते चल इस खाई को पाटने के बदले और चौड़ी करने चले. मत भूलिए जाति एक सामाजिक अभिशाप है इसका निदान सामूहिक प्रयास से हो सकता है, ना की इस तरह के आयोजनों से जो समाज के नाकारा लोगों द्वारा अपनी राजनीति के दुकान को चमकाने के लिए किया जाता है. आज सुचना क्रांति के दौर में हम क्यों जाति की बात करते है, जाति एक सोच है ना की हकीकत असंख्य सवर्णों ने दलितों के उत्थान के लिए काम किया हम उनका नाम क्यों नहीं लेते ? वैसे भी इस तरह के आयोजनों से सम्बंधित समुदाय का कुछ भला नहीं हुआ,लेकिन इनके आयोजक या तो मंत्री पद पाने में सफल रहे अथवा बिधान मंडल की शोभा बढ़ा रहे है.
जाति आज सिर्फ वोट बैंक बन कर रह गया है इसका हकीकत से कोई लेना देना नहीं. आज सिर्फ और सिर्फ दो जाति ही है , आमिर और गरीब
जाति आज सिर्फ वोट बैंक बन कर रह गया है इसका हकीकत से कोई लेना देना नहीं. आज सिर्फ और सिर्फ दो जाति ही है , आमिर और गरीब
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